Monday 20 May 2019

आभा...भाग २

#आभा
भाग २
"आं.. हाँ....चलो।" स्वर्णिम ने कहा।
तीनों मिंटो पार्क से बाहर निकले। स्वर्णिम चल तो रहा था लेकिन वह अभी भी सोच में ही था। कि आखिर बात क्या है।
वह गहन सोच में था कि आभा आखिर क्या छुपा रही है।
"आभा, कहाँ थी तुम ? इतने दिनों से ...कहीं गई थी। और हाँ प्रैक्टिकल की डेट भी है । वैसे कितने प्रैक्टिकल हुए हैं अभी?" शिवम ने कहा।
"अरे यार अभी पांच ही तो हुए हैं । डॉक्टर आनन्द  होने ही नही देते। वाइवा में दौड़ते हैं। वैसे स्वर्णिम साहब आज आप क्लास न जाकर इधर क्या कर रहें हैं?..आज मिंटो घूमने का मन हो गया क्या।"
"ए साहब! कहाँ हैं आप आपसे ही बात कर रही हूँ....हेल्लो ..." स्वर्णिम को झकझोरते हुए आभा बोली।

"वो मैं... आ..हाँ.... मैं क्लास के बारे में सोच रहा था।"
स्वर्णिम जो कहीं दूर विचारों की दुनिया में खोया हुआ था।
आभा के स्पर्श से पुनः संयत होते हुए बोला।
आभा रिक्शा रुकवा चुकी थी।
"भैया यूनिवर्सिटी चौराहा.....
"मैडम 70 रूपये"
"इतना ज्यादा ...60 लीजिये और चलिये।"
"बैठो"
सब बैठ गए । लेकिन एक बनावटीपन हर जगह था आभा जानती थी कि स्वर्णिम क्या सोच रहा था । लेकिन वह फिर से पहले वाली आभा के रूप में थी ..उन्मुक्त , चंचल, बिलकुल चहकती हुई।
शिवम ने पुछा," तुम लड़ किससे रही थी और रो क्यों रही थी।"
"उदास मैं नही , परेशान तो आपके दोस्त हैं।...संभालो इन्हें कहीं किसी याद तो नही आ रही इनको....क्यों....।आभा ने बात को काटते हुए कहा।
"तुम भी न ..." स्वर्णिम ने कहा
पूरे रास्ते आभा और शिवम की बचकानी लड़ाई चलती रही।
और स्वर्णिम विचारों के सागर में गोते लगा रहा था। और अनुमान लगाने का प्रयत्न करता रहा कि आखिर बात क्या हो सकती है।
रिक्शा आनन्द भवन आ पहुंचा। और स्वराज भवन के सामने वाले मोड़ से मुड़ गया। एस बी आई एटीएम के पास रोज़ जैसा ही ट्रैफिक था। सो रिक्शा रुक गया।
"यार ये जाम भी न...मन करता है कि एक हेलीकाप्टर खरीद लूँ। पुरे शहर के हर एक चौराहे का यही हाल है।साला...जब देखो तब ..." शिवम बोला
"शिवम, हेलीकॉप्टर बाद में खरीदना अभी पैदल ही चलते हैं। क्यों स्वर्णिम..? आभा ने कहा।
"हाँ चलो...भइया ये लीजिये।" आभा पैसे देते हुए बोली।
"अरे छुट्टा दीजिये ।" आम इलाहाबादी रिक्शेवालों की तरह वह छुटटों का रोना रोते हुए बोला।
आभा ने स्वर्णिम की और प्रश्न वाचक निगाहों से देखा।
स्वर्णिम ने 60 रूपये छुट्टे दिए और तीनों चल दिए ।
"पढ़ा क्या रहे हैं शुक्ला सर"
" Ring theory and homomorphism"
" अभी मैंने रिंग की एक भी क्लास नही की। वैसे क्या क्या बात दिए।"
"अभी रिंग, डिवीज़न रिंग, और इंटीग्रल डोमेन...।"
तीनों ए एन झा हॉस्टल के सामने पहुंचे ही थे
"आभा...आभा...शिवम.."
उन्होंने देखा कि शिल्पा आ रही थी साइकिल से , लेकिन भीड़ होने की वजह से पैदल साइकिल खींच रही थी।
"कहाँ थी तुम इत्ते दिनों से। और तुम्हारा फ़ोन भी नही लग रहा था...अपनी नोट्स लेलो स्पेक्ट्रोस्कोपी वाली। मैंने फोटोकॉपी करा ली है।"
" अरे बस बस पागल औरत ...आराम से यूनिवर्सिटी चल के बात कर लेना। शुरू हो गयी नोट्स नोट्स... हे भगवान ये सब कितना पढ़ते हैं। एक मैं हूँ साला घर जाते ही सो जाता हूँ । घर वाले मारते हुए जगाते हैं।" शिवम् ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा। वह था ही मस्तमौला लड़का सारा दिन लड़कियों से बातें करता । और सबकी टांग खींचता।
"अब साइकिल लेकर अंदर चलबो का जाओ स्टैंड में लगा कर आओ। तुम लोगों की वजह से ही यूनिवर्सिटी में..." शिवम् को एक मौका और मिला शिल्पा को चिढ़ाने का।।
"अब बस करो आते हैं।"
"मत आना.....वही रहना.." शिवम् दांत दिखाते हुए बोला।
"शिवम क्यों परेशान करते हो उसको। बेचारी सीधी है।" बहुत देर बाद स्वर्णिम कुछ बोला था।
"चलो बोले तो महाराज। हमे लगा कि मौन  व्रत रख लिए हैं।"
सब पहुंचे क्लास शुरू हो चुकी थी।
"बाय क्लास के बाद मिलते हैं। लाइब्रेरी में"
शिवम और शिल्पा फिजिक्स लाइब्रेरी चले गए थे।
दोनों क्लास में घुसे ।
"So,.. An integral domain is division ring if it is finite......." प्रोफेसर शुक्ल पढ़ा रहे थे।
प्रोफेसर शुक्ल स्वर्णिम को देख कर थोड़ा मुस्कुराये । और फिर पढ़ाने लगे।
इधर स्वर्णिम कुछ और ही सोच रहा था
............

क्रमशः
.......© मुकुल जायसवाल
       ०३/०४/२०१९
        १०:१५-१०:४७ अपराह्न



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