Wednesday 24 April 2019

आभा भाग १


आभा
भाग १
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।


चारो तरफ मंत्रोच्चार हो रहा था।
गंगा मैया की जय.....
त्रिवेणी मैया की जय....


"शिवम, जल्दी चलो देर हो रही है। अभी कोई ई रिक्शा भी नही मिलेगा।" स्वर्णिम ने कहा।
"अरे भाई देख देख उसे देख....."
बात को बीच में ही काटते हुए स्वर्णिम ने कहा "यार बाद में देख लेना । अभी न चले तो प्रोफेसर शुक्ल कक्षा में नही घुसने देंगे।"
स्वर्णिम हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ त्रिवेणी संगम से बड़े हनुमान मंदिर तक ले आता है ।
" रिक्शा ....रिक्शा....देखो ...आज देर हुई बेटा तो बताएँगे तुमको...भइया यूनिवर्सिटी चलबो...." कहते हुए स्वर्णिम शिवम को लेकर रिक्शे में बैठ गया। और भी बड़बड़ाये जा रहा था " तुम्हारे चक्कर में आज फिर लेट हो गए...आज से आके सीधा स्न्नान करके चले जाय करेंगे...सुन रहे हो न ..."
इधर शिवम जो की अपने मोबाइल में मस्त था .."हाँ भाई..बिलकुल" ।
रिक्शा त्रिवेणी मार्ग के पास मिंटो पार्क वाले मोड़ पर पहुंचा ही था कि स्वर्णिम बोला "शिवम..आभा...ये .."
शिवम कान से इयरफोन हटाते हुए बोला "अभी तो बहुत कह रहे थे कि देर हो रही देर हो रही और अब आभा दिखाई देने लगी। चलो वो क्लास में तो कुछ दिनों से आ नही रही है । यहाँ कहाँ होगी।" ।
"नही शिवम वही थी"
रिक्शा कुछ दूर जा चूका था। शिवम ने देखा और कहा
"हाँ , ये तो आभा ही है लेकिन..... भइया रिक्शा उधर मोड़ ये मिंटो पार्क की तरफ..."
"भइया उधर नही जाएंगे"
"अरे पैसे ले लेना। चलिये प्लीज।"
"यार, ये कहाँ जा रही है इस समय...और तुमने उसका चेहरा देखा रो रही थी शायद ।"
"पता नही मैंने तो केवल जाते हुये ही देखा था।'
"ये यूनिवर्सिटी भी नही आ रही थी । कई दिनों से ...ऐसे कभी कहीं बाहर जाती थी तो बताती थी कि कहां जा रही है। लेकिन पिछले दस दिनों से कोई बात नही हुई और न मैंने ही फोन किया उस दिन फोन आया था तो मैं क्लास में था उसके बाद लगाया तो लगा नही।"
 
"बहुत फोन आने जाने लगे हैं आपके पास ....हूँ.... क्या बात है ।"
"शिवम मज़ाक मत करो नही तो...."
अचानक रिक्शा रुका, "लीजिये मिंटो पार्क आ गया" रिक्शेवाले ने कहा । "कितना हुआ ..ये लीजिये"
दोनों देखा कि आभा फ़ोन पे किसी से लड़ रही थी
" जब तुम्हे आना ही नही था तो फिर तुमने मुझसे ऐसा क्यों कहा।"
तब तक आभा ने स्वर्णिम को देख लिया।
दोनों की नज़र जैसे मिली ।
"स्वर्णिम, तुम यहाँ।"
बड़ी चतुराई से आँखों से आंसू छुपाने की नाकाम कोशिश करती हुई आभा बोली, "आज क्लास नही है क्या।"
"क्लास तो तुम्हारी भी है" शिवम बोला
"तुम्हारी नही हैं न तुम चुप रहो" उसको लगभग डांटते हुई बोली। और अब तक वह अपने चेहरे एक झूठी मुस्कान ला चुकी थी।
आभा उन रोंदू लड़कियों में नही थी और न ही कमजोर वह खुद में विश्वास करने वाली लड़की थी। वो आज की लड़की थी। लेकिन उनमें नही जो आधे कपड़े पहन कर खुद को आधुनिक कहते हैं वो इतनी जल्दी किसी को अपनी परेशानी का हिस्सा नही बनाती थी। लेकिन दूसरों की परेशानी का हल सबसे पहले उसके पास रहता था। यूँ तो स्वर्णिम मेधावी था लेकिन दो एक बार आभा ने उसकी भी मदद की थी। ये बात स्वर्णिम भी जानता था।
स्वर्णिम की तन्द्रा तोड़ते हुए आभा ने कहा, " मुझे पिछले दिनों के नोट्स दे देना और जल्दी चलो अभी 15 मिनट बाकी है क्लास शुरू होने में....."
"आं... हाँ .. चलो....." स्वर्णिम ने उसे देखते हुए कहा।

......क्रमशः


© MUKUL JAISWAL
  University of Allahabad



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