#आभा
भाग ३
स्वर्णिम क्लास में तो था लेकिन बार बार किसी सोच में खो जाता । प्रोफेसर शुक्ल जो यूँ तो किसी से कुछ नही कहते पर इतना था वो पढ़ाते हुए स्वर्णिम को जरूर देखते थे मनो उससे कन्फर्मेशन ले के चलते थे लेकिन आज उन्होंने देखा कि स्वर्णिम क्लास में कुछ खोया खोया लग रहा था।
"क्यों भई, समझ में नही आ रहा है क्या?" प्रोफेसर शुक्ल ने पूरी क्लास को संबोधित करते हुए कहा।
"आ रहा है..." कुछ मिश्रित आवाज़ें सुनाई पड़ी।
स्वर्णिम कुछ कुछ क्लास में ध्यान देने लगा।
अंततः क्लास खत्म हुई स्वर्णिम और आभा दोनों क्लास से निकल कर फिजिक्स लाइब्रेरी की ओर चल दिए। रास्ते में स्वर्णिम कुछ बच्चों से बात करने लगा जो आज की क्लास के बारे में डिस्कस के कर रहे थे। उधर आभा लाइब्रेरी चली गयी।
स्वर्णिम भी फिजिक्स 18 नम्बर के बगल से होता हुआ म्योर टावर को देखते हुए जा रहा था। विजयनगरम हाल के ऊपर इटालियन मार्बल लगाया जा रहा था ।
आखिर वह प्रोफसर उत्तम के चैम्बर के सामने से गुजरता हुआ लाइब्रेरी पहुंचा।
लाइब्रेरी में हीरामणि जी और पंकज जी बैठे थे रोज़ की तरह कुछ सीनियर्स थे और कुछ क्लासमेट।
आभा, शिल्पा, शिवम् की बातें चल रही थी और विभा भी बैठी थी।
और तभी सब हंस पड़े, स्वर्णिम ने पुछा
"क्या हुआ ?? कोई जोक है?"
तो शिवम् आंख मटकाते हुए बोला "ये पागल औरत खुद एक जोक है"
"अच्छा बस चलो चाय पी के आते हैं" स्वर्णिम बोला
"नेकी और पूछ पूछ। चलो।" शिवम् बोला।
स्वर्णिम ने सोच रखा था अब इस समय आभा से वह पूछ कर रहेगा बात क्या है।
पांचो चैनेल की ग्रिल से होते हुये। नीचे हरिकेश के यहाँ चाय पीने आ गए।
"हरिकेश सर , पांच चाय।" स्वर्णिम बोला
और पांचो फिजिक्स सीढ़ियों पर बैठ गए।
स्वर्णिम ने कहा..."आभा , ये बताओ............."
.........
क्रमशः
कहानी जारी रहेगी।
© मुकुल जायसवाल
विज्ञानं संकाय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
भाग ३
स्वर्णिम क्लास में तो था लेकिन बार बार किसी सोच में खो जाता । प्रोफेसर शुक्ल जो यूँ तो किसी से कुछ नही कहते पर इतना था वो पढ़ाते हुए स्वर्णिम को जरूर देखते थे मनो उससे कन्फर्मेशन ले के चलते थे लेकिन आज उन्होंने देखा कि स्वर्णिम क्लास में कुछ खोया खोया लग रहा था।
"क्यों भई, समझ में नही आ रहा है क्या?" प्रोफेसर शुक्ल ने पूरी क्लास को संबोधित करते हुए कहा।
"आ रहा है..." कुछ मिश्रित आवाज़ें सुनाई पड़ी।
स्वर्णिम कुछ कुछ क्लास में ध्यान देने लगा।
अंततः क्लास खत्म हुई स्वर्णिम और आभा दोनों क्लास से निकल कर फिजिक्स लाइब्रेरी की ओर चल दिए। रास्ते में स्वर्णिम कुछ बच्चों से बात करने लगा जो आज की क्लास के बारे में डिस्कस के कर रहे थे। उधर आभा लाइब्रेरी चली गयी।
स्वर्णिम भी फिजिक्स 18 नम्बर के बगल से होता हुआ म्योर टावर को देखते हुए जा रहा था। विजयनगरम हाल के ऊपर इटालियन मार्बल लगाया जा रहा था ।
आखिर वह प्रोफसर उत्तम के चैम्बर के सामने से गुजरता हुआ लाइब्रेरी पहुंचा।
लाइब्रेरी में हीरामणि जी और पंकज जी बैठे थे रोज़ की तरह कुछ सीनियर्स थे और कुछ क्लासमेट।
आभा, शिल्पा, शिवम् की बातें चल रही थी और विभा भी बैठी थी।
और तभी सब हंस पड़े, स्वर्णिम ने पुछा
"क्या हुआ ?? कोई जोक है?"
तो शिवम् आंख मटकाते हुए बोला "ये पागल औरत खुद एक जोक है"
"अच्छा बस चलो चाय पी के आते हैं" स्वर्णिम बोला
"नेकी और पूछ पूछ। चलो।" शिवम् बोला।
स्वर्णिम ने सोच रखा था अब इस समय आभा से वह पूछ कर रहेगा बात क्या है।
पांचो चैनेल की ग्रिल से होते हुये। नीचे हरिकेश के यहाँ चाय पीने आ गए।
"हरिकेश सर , पांच चाय।" स्वर्णिम बोला
और पांचो फिजिक्स सीढ़ियों पर बैठ गए।
स्वर्णिम ने कहा..."आभा , ये बताओ............."
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क्रमशः
कहानी जारी रहेगी।
© मुकुल जायसवाल
विज्ञानं संकाय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय