Sunday 9 June 2019

आभा भाग ४


#आभा
भाग ४
[जिन्होंने पिछले तीन भाग नही पढ़े हैं वे इस सूत्रिका ( www.mukulkjaiswal.blogspot.com )से उन्हें पढ़ कर कथा का तारतम्य सुनिश्चित कर लें।]
"आभा ! ये बताओ तुम क्लास क्यों नही आ रही थी।" स्वर्णिम ने आभा के चहकते चेहरे को देखते हुए पूछा। ये वही आँखे थी जिनमे कुछ देर पहले भाव आंसू बन कर भरे थे। ये वही चेहरा जिस पर उदासी की इबारतें लिखी थी। होठों पर लफ्ज़ सहमे हुए थे। लेकिन अब उन आँखों में मस्ती थी। चेहरे पर उत्फुल्लता थी और होंठो पर मस्ती भरे चुटकी लेते हुए सवाल और बेतकल्लुफ़ भरे जवाब।
"अरे स्वर्णिम बाबू! आप क्यों परेशान होते हैं। कापियां आपकी ही चाहिये पूरा करने के लिये। चाय पीजिये और कापियां निकालिए और उन्हें भूल जाइए कुछ दिनों के लिए।
और विभा मैडम! आप जरा चश्मा साफ़ कीजिये। ये नोट्स हैं इन्हें पढ़ के कल तक लौटा दीजियेगा। अंडरस्टैंड।" आभा ने हाथ लहराते हुए उसी अंदाज़ में कहा।
उधर शिवम् शिल्पा भी चाय खत्म कर चुके थे । स्वर्णिम और शिवम् ने पैसे दिए । पांचो लाइब्रेरी चल दिए ।
इन पांचों का यही कम था जम के पढ़ना और मस्ती करना।
डीलिंग देने में तो नम्बर एक थे। कोई चुनाव हो । कोई कार्यक्रम हो। पूरा सप्पोर्ट। और पढ़ने में भी अव्वल।
अभी हाल ही में एक आयोजन हुआ था विज्ञान संकाय में पांचो ने सबके साथ खूब मेहनत की और भव्य आयोजन हुआ था। पूरा विवि गवाह था।
यूँ तो पांचो बिल्कुल मस्त स्वाभाव के थे लेकिन स्वर्णिम थोड़ा संकोची था ।
और आभा ने भी कई अनुभव अपने सीने में दबा रखे थे।
दोनों की विचार तो मिलते थे लेकिन राहें बिलकुल जुदा थी।
स्वर्णिम के पास आदर्शवादी व्यवहारिक व्यक्तित्व था तो आभा एक अल्हड़ प्रयोगवादी व्यक्तित्व की मालकिन।
स्वर्णिम नियमों में न चाह कर भी बंधे रहना चाहता था तो दूसरा सारे नियम तोड़ कर आगे बढ़ जाना चाहता था।
हालांकि दिमाग एक जैसा ही चलता था सोचते भी एक जैसा ही थे लेकिन स्वर्णिम व्यवहारिक मर्यादाओं में बंध कर न कर पाता और आभा उस आनन्द को जी लेती। किसी को चिढाना हो  स्वर्णिम सोच के रह जाए लेकिन आभा कान खींच ले।
आज स्वर्णिम अलग हट के बैठ गया और वो चारो अलग सामने वाली डेस्क पे।
"यार अभी कितना पढ़ना है एग्जाम आने वाले हैं तैयारी जीरो।" शिवम् ने आर के वाली सॉलिड स्टेट की नोट्स पलटते हुए कहा।
"सभी का यही हाल है । और लड़ाओ चुनाव करो प्रचार।"
आभा ने कहा।
"हाँ यार अभी कुछ नही पढ़ा....."शिल्पा कह ही रही थी कि आभा बोल पड़ी "मैडम अब केमिस्ट्री वाले न कहें यहां अभी पूरी गणित पढ़नी है। तुम लोग का तुम सब तो दो दिन पढ़ लोगे केमिस्ट्री हो जाएगा यहां अभी खोपड़ी खपानी है।"
"हाँ अभी अलजेब्रा , एनालिसिस , मैकेनिक्स सब बचा है। और न्यूमेरिकल मेथड तो छुए भी नही।" विभा ने चश्मा सम्भालते हुए । आभा की बात का अनुमोदन किया।
उधर स्वर्णिम अजॉय घटक की किताब से क्वांटम पढ़ रहा था। लेकिन उसके दिमाग में कुछ और चल रहा था।
और उन सब की बातें भी सुन रहा था ।
पहले तो उसने सोचा जाने दे ये आभा का पर्सनल मैटर है।
लेकिन क्या आभा का पर्सनल मैटर उस के लिये मैटर नही करता ।
स्वर्णिम को पता नही था लेकिन उसके मन के किसी कोने में आभा ने अपना घर बना लिया था। बिना किराये के किरायेदार  आ चुके थे दिल में और वो भी बिना बताए । उसे पता भी नही। अब आभा किरायेदार ही थी या परमानेंट निवासी  । ये वक्त ही बताएगा । लेकिन कुछ तो आदि शक्ति ने लिखा रखा था दोनों की  जिंदगी में।
आभा भी अपने दोस्तों से स्वर्णिम के बारे में ही बात करती ज्यादा तर उसके बारे में जानने की कोशिश करती ।
आभा के बारे में सोंचते हुए स्वर्णिम ने ये तय कर लिया वह आभा से इस बारे कोई बात नही करेगा बल्कि खुद पता लगायेगा कि आखिर बात क्या हुई थी। क्योंकि पूछने पर भी आभा बताने वाली थी नही।
क्रमशः।
कहानी जारी रहेगी।
© मुकुल जायसवाल
  इलाहाबाद विश्वविद्यालय
  "ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी विक्रमी २०७६ परिधावी संवत्सर"

Tuesday 28 May 2019

आभा भाग ३

#आभा
भाग ३

स्वर्णिम क्लास में तो था लेकिन बार बार किसी सोच में खो जाता । प्रोफेसर शुक्ल जो यूँ तो किसी से कुछ नही कहते पर इतना था वो पढ़ाते हुए स्वर्णिम को जरूर देखते थे मनो उससे  कन्फर्मेशन ले के चलते थे लेकिन आज उन्होंने देखा कि स्वर्णिम क्लास में कुछ खोया खोया लग रहा था।

"क्यों भई, समझ में नही आ रहा है क्या?" प्रोफेसर शुक्ल ने पूरी क्लास को संबोधित करते हुए कहा।

"आ रहा है..." कुछ मिश्रित आवाज़ें सुनाई पड़ी।

स्वर्णिम कुछ कुछ क्लास में ध्यान देने लगा।

अंततः क्लास खत्म हुई स्वर्णिम और आभा दोनों क्लास से निकल कर फिजिक्स लाइब्रेरी की ओर चल दिए। रास्ते में स्वर्णिम कुछ बच्चों से बात करने लगा जो आज की क्लास के बारे में डिस्कस के कर रहे थे। उधर  आभा लाइब्रेरी चली गयी।
स्वर्णिम भी  फिजिक्स 18 नम्बर के बगल से होता हुआ म्योर टावर को देखते हुए जा रहा था। विजयनगरम हाल के ऊपर इटालियन मार्बल लगाया जा रहा था ।
आखिर वह प्रोफसर उत्तम के चैम्बर के सामने से गुजरता हुआ लाइब्रेरी पहुंचा।
लाइब्रेरी में हीरामणि जी और पंकज जी बैठे थे रोज़ की तरह कुछ सीनियर्स थे और कुछ क्लासमेट।
आभा, शिल्पा, शिवम् की बातें चल रही थी और विभा भी बैठी थी।

और तभी सब हंस पड़े, स्वर्णिम ने पुछा
"क्या हुआ ?? कोई जोक है?"
तो शिवम् आंख मटकाते हुए बोला "ये पागल औरत खुद एक जोक है"

"अच्छा बस चलो चाय पी के आते हैं" स्वर्णिम बोला

"नेकी और पूछ पूछ। चलो।" शिवम् बोला।

स्वर्णिम ने सोच रखा था अब इस समय आभा से वह पूछ कर रहेगा बात क्या है।

पांचो चैनेल की ग्रिल से होते हुये। नीचे हरिकेश के यहाँ चाय पीने आ गए।

"हरिकेश सर , पांच चाय।" स्वर्णिम बोला

और पांचो फिजिक्स सीढ़ियों पर बैठ गए।

स्वर्णिम ने कहा..."आभा , ये बताओ............."
.........
क्रमशः

कहानी जारी रहेगी।

© मुकुल जायसवाल
विज्ञानं संकाय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय

Monday 20 May 2019

आभा...भाग २

#आभा
भाग २
"आं.. हाँ....चलो।" स्वर्णिम ने कहा।
तीनों मिंटो पार्क से बाहर निकले। स्वर्णिम चल तो रहा था लेकिन वह अभी भी सोच में ही था। कि आखिर बात क्या है।
वह गहन सोच में था कि आभा आखिर क्या छुपा रही है।
"आभा, कहाँ थी तुम ? इतने दिनों से ...कहीं गई थी। और हाँ प्रैक्टिकल की डेट भी है । वैसे कितने प्रैक्टिकल हुए हैं अभी?" शिवम ने कहा।
"अरे यार अभी पांच ही तो हुए हैं । डॉक्टर आनन्द  होने ही नही देते। वाइवा में दौड़ते हैं। वैसे स्वर्णिम साहब आज आप क्लास न जाकर इधर क्या कर रहें हैं?..आज मिंटो घूमने का मन हो गया क्या।"
"ए साहब! कहाँ हैं आप आपसे ही बात कर रही हूँ....हेल्लो ..." स्वर्णिम को झकझोरते हुए आभा बोली।

"वो मैं... आ..हाँ.... मैं क्लास के बारे में सोच रहा था।"
स्वर्णिम जो कहीं दूर विचारों की दुनिया में खोया हुआ था।
आभा के स्पर्श से पुनः संयत होते हुए बोला।
आभा रिक्शा रुकवा चुकी थी।
"भैया यूनिवर्सिटी चौराहा.....
"मैडम 70 रूपये"
"इतना ज्यादा ...60 लीजिये और चलिये।"
"बैठो"
सब बैठ गए । लेकिन एक बनावटीपन हर जगह था आभा जानती थी कि स्वर्णिम क्या सोच रहा था । लेकिन वह फिर से पहले वाली आभा के रूप में थी ..उन्मुक्त , चंचल, बिलकुल चहकती हुई।
शिवम ने पुछा," तुम लड़ किससे रही थी और रो क्यों रही थी।"
"उदास मैं नही , परेशान तो आपके दोस्त हैं।...संभालो इन्हें कहीं किसी याद तो नही आ रही इनको....क्यों....।आभा ने बात को काटते हुए कहा।
"तुम भी न ..." स्वर्णिम ने कहा
पूरे रास्ते आभा और शिवम की बचकानी लड़ाई चलती रही।
और स्वर्णिम विचारों के सागर में गोते लगा रहा था। और अनुमान लगाने का प्रयत्न करता रहा कि आखिर बात क्या हो सकती है।
रिक्शा आनन्द भवन आ पहुंचा। और स्वराज भवन के सामने वाले मोड़ से मुड़ गया। एस बी आई एटीएम के पास रोज़ जैसा ही ट्रैफिक था। सो रिक्शा रुक गया।
"यार ये जाम भी न...मन करता है कि एक हेलीकाप्टर खरीद लूँ। पुरे शहर के हर एक चौराहे का यही हाल है।साला...जब देखो तब ..." शिवम बोला
"शिवम, हेलीकॉप्टर बाद में खरीदना अभी पैदल ही चलते हैं। क्यों स्वर्णिम..? आभा ने कहा।
"हाँ चलो...भइया ये लीजिये।" आभा पैसे देते हुए बोली।
"अरे छुट्टा दीजिये ।" आम इलाहाबादी रिक्शेवालों की तरह वह छुटटों का रोना रोते हुए बोला।
आभा ने स्वर्णिम की और प्रश्न वाचक निगाहों से देखा।
स्वर्णिम ने 60 रूपये छुट्टे दिए और तीनों चल दिए ।
"पढ़ा क्या रहे हैं शुक्ला सर"
" Ring theory and homomorphism"
" अभी मैंने रिंग की एक भी क्लास नही की। वैसे क्या क्या बात दिए।"
"अभी रिंग, डिवीज़न रिंग, और इंटीग्रल डोमेन...।"
तीनों ए एन झा हॉस्टल के सामने पहुंचे ही थे
"आभा...आभा...शिवम.."
उन्होंने देखा कि शिल्पा आ रही थी साइकिल से , लेकिन भीड़ होने की वजह से पैदल साइकिल खींच रही थी।
"कहाँ थी तुम इत्ते दिनों से। और तुम्हारा फ़ोन भी नही लग रहा था...अपनी नोट्स लेलो स्पेक्ट्रोस्कोपी वाली। मैंने फोटोकॉपी करा ली है।"
" अरे बस बस पागल औरत ...आराम से यूनिवर्सिटी चल के बात कर लेना। शुरू हो गयी नोट्स नोट्स... हे भगवान ये सब कितना पढ़ते हैं। एक मैं हूँ साला घर जाते ही सो जाता हूँ । घर वाले मारते हुए जगाते हैं।" शिवम् ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा। वह था ही मस्तमौला लड़का सारा दिन लड़कियों से बातें करता । और सबकी टांग खींचता।
"अब साइकिल लेकर अंदर चलबो का जाओ स्टैंड में लगा कर आओ। तुम लोगों की वजह से ही यूनिवर्सिटी में..." शिवम् को एक मौका और मिला शिल्पा को चिढ़ाने का।।
"अब बस करो आते हैं।"
"मत आना.....वही रहना.." शिवम् दांत दिखाते हुए बोला।
"शिवम क्यों परेशान करते हो उसको। बेचारी सीधी है।" बहुत देर बाद स्वर्णिम कुछ बोला था।
"चलो बोले तो महाराज। हमे लगा कि मौन  व्रत रख लिए हैं।"
सब पहुंचे क्लास शुरू हो चुकी थी।
"बाय क्लास के बाद मिलते हैं। लाइब्रेरी में"
शिवम और शिल्पा फिजिक्स लाइब्रेरी चले गए थे।
दोनों क्लास में घुसे ।
"So,.. An integral domain is division ring if it is finite......." प्रोफेसर शुक्ल पढ़ा रहे थे।
प्रोफेसर शुक्ल स्वर्णिम को देख कर थोड़ा मुस्कुराये । और फिर पढ़ाने लगे।
इधर स्वर्णिम कुछ और ही सोच रहा था
............

क्रमशः
.......© मुकुल जायसवाल
       ०३/०४/२०१९
        १०:१५-१०:४७ अपराह्न



Wednesday 24 April 2019

आभा भाग १


आभा
भाग १
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।


चारो तरफ मंत्रोच्चार हो रहा था।
गंगा मैया की जय.....
त्रिवेणी मैया की जय....


"शिवम, जल्दी चलो देर हो रही है। अभी कोई ई रिक्शा भी नही मिलेगा।" स्वर्णिम ने कहा।
"अरे भाई देख देख उसे देख....."
बात को बीच में ही काटते हुए स्वर्णिम ने कहा "यार बाद में देख लेना । अभी न चले तो प्रोफेसर शुक्ल कक्षा में नही घुसने देंगे।"
स्वर्णिम हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ त्रिवेणी संगम से बड़े हनुमान मंदिर तक ले आता है ।
" रिक्शा ....रिक्शा....देखो ...आज देर हुई बेटा तो बताएँगे तुमको...भइया यूनिवर्सिटी चलबो...." कहते हुए स्वर्णिम शिवम को लेकर रिक्शे में बैठ गया। और भी बड़बड़ाये जा रहा था " तुम्हारे चक्कर में आज फिर लेट हो गए...आज से आके सीधा स्न्नान करके चले जाय करेंगे...सुन रहे हो न ..."
इधर शिवम जो की अपने मोबाइल में मस्त था .."हाँ भाई..बिलकुल" ।
रिक्शा त्रिवेणी मार्ग के पास मिंटो पार्क वाले मोड़ पर पहुंचा ही था कि स्वर्णिम बोला "शिवम..आभा...ये .."
शिवम कान से इयरफोन हटाते हुए बोला "अभी तो बहुत कह रहे थे कि देर हो रही देर हो रही और अब आभा दिखाई देने लगी। चलो वो क्लास में तो कुछ दिनों से आ नही रही है । यहाँ कहाँ होगी।" ।
"नही शिवम वही थी"
रिक्शा कुछ दूर जा चूका था। शिवम ने देखा और कहा
"हाँ , ये तो आभा ही है लेकिन..... भइया रिक्शा उधर मोड़ ये मिंटो पार्क की तरफ..."
"भइया उधर नही जाएंगे"
"अरे पैसे ले लेना। चलिये प्लीज।"
"यार, ये कहाँ जा रही है इस समय...और तुमने उसका चेहरा देखा रो रही थी शायद ।"
"पता नही मैंने तो केवल जाते हुये ही देखा था।'
"ये यूनिवर्सिटी भी नही आ रही थी । कई दिनों से ...ऐसे कभी कहीं बाहर जाती थी तो बताती थी कि कहां जा रही है। लेकिन पिछले दस दिनों से कोई बात नही हुई और न मैंने ही फोन किया उस दिन फोन आया था तो मैं क्लास में था उसके बाद लगाया तो लगा नही।"
 
"बहुत फोन आने जाने लगे हैं आपके पास ....हूँ.... क्या बात है ।"
"शिवम मज़ाक मत करो नही तो...."
अचानक रिक्शा रुका, "लीजिये मिंटो पार्क आ गया" रिक्शेवाले ने कहा । "कितना हुआ ..ये लीजिये"
दोनों देखा कि आभा फ़ोन पे किसी से लड़ रही थी
" जब तुम्हे आना ही नही था तो फिर तुमने मुझसे ऐसा क्यों कहा।"
तब तक आभा ने स्वर्णिम को देख लिया।
दोनों की नज़र जैसे मिली ।
"स्वर्णिम, तुम यहाँ।"
बड़ी चतुराई से आँखों से आंसू छुपाने की नाकाम कोशिश करती हुई आभा बोली, "आज क्लास नही है क्या।"
"क्लास तो तुम्हारी भी है" शिवम बोला
"तुम्हारी नही हैं न तुम चुप रहो" उसको लगभग डांटते हुई बोली। और अब तक वह अपने चेहरे एक झूठी मुस्कान ला चुकी थी।
आभा उन रोंदू लड़कियों में नही थी और न ही कमजोर वह खुद में विश्वास करने वाली लड़की थी। वो आज की लड़की थी। लेकिन उनमें नही जो आधे कपड़े पहन कर खुद को आधुनिक कहते हैं वो इतनी जल्दी किसी को अपनी परेशानी का हिस्सा नही बनाती थी। लेकिन दूसरों की परेशानी का हल सबसे पहले उसके पास रहता था। यूँ तो स्वर्णिम मेधावी था लेकिन दो एक बार आभा ने उसकी भी मदद की थी। ये बात स्वर्णिम भी जानता था।
स्वर्णिम की तन्द्रा तोड़ते हुए आभा ने कहा, " मुझे पिछले दिनों के नोट्स दे देना और जल्दी चलो अभी 15 मिनट बाकी है क्लास शुरू होने में....."
"आं... हाँ .. चलो....." स्वर्णिम ने उसे देखते हुए कहा।

......क्रमशः


© MUKUL JAISWAL
  University of Allahabad



आभा भाग ४

#आभा भाग ४ [जिन्होंने पिछले तीन भाग नही पढ़े हैं वे इस सूत्रिका ( www.mukulkjaiswal.blogspot.com )से उन्हें पढ़ कर कथा का तारतम्य सुनिश...